Thursday, December 29

हृदय द्रवीभूत~2

हरे कृष्ण
गोपाल....

 हमारी भी लगन उन प्रभु में लग जाये पर लगन भी कैसी-
लगन लगन सब कोई कहे लगन कहावे सोय |
नारायण व लगन में तन मन दीजे खोय ||

प्रेम में मगन होकर भगवन का भजन लगन से करे और भगवन के आगे करुनाभाव से रोते रहे-"हे नाथ हे हरी हे गोविन्द हे वासुदेव ! मुझे तो केवल आपका ही सहारा है,मेरा आपके बिना और कोई अधर नहीं है| प्रभु ! मेरे मन में न ज्ञान है,न भक्ति है,न वैराग्य है और न ही प्रेम है | मेरे में तो कुछ भी नहीं है | मै तो केवल आपकी शरण में हूँ,वह भी केवल आपके वचन  मात्र से | प्रभु | मै ह्रदय से आपकी शरण में हूँ | हे प्रभु मै तो इतना चालक हूँ की आपको आपके सामने तो कहता हूँ की गलत काम नहीं करूँगा पर जब विवेक खो देता हूँ तो काम और क्रोध में लिप्त हो जाता हूँ | प्रभु अप तब भी मुझ पर कृपा करते हो | भगवन मै कैसा भी हूँ बस ये अब जन गया हूँ की तुम्हारा हूँ |"
श्याम सुन्दर सदा प्यारे रहे...हम उन्ही के रहे वो हमारे रहे...
भजन में भगवन के नाम का कीर्तन एक स्वर और एक ताल से किया जाये तो इतना प्रिय लगता है की मन कहता है कि कीर्तन ही होता रहे| ऐसे कीर्तन में सात्विक और अलौकिक रस आता है जो परमात्मा क़ी प्राप्ति में  बहुत ही सहायक है | इससे भगवान में प्रेम बढ़ता  है |
                          कीर्तन करते हुए ऐसा मनो क़ी भगवान यहाँ आ पहुचे है | भगवान ने भक्तकी  टेर  सुनी  इर टेर सुनके आ पहुचे | मन में यह सोचना है क़ी भगवान वास्तव में ही यहाँ आ गये है |आकाश में स्थित हो कर हम सब पर गुणों क़ी वर्षा कर रहे है | भगवान दया के सागर है और प्रेम के पुंज है |
किसी को ऊपर सागर उड़ेल दिया जाये तो उसके चारो तरफ जल ही जल द्रष्टिगोचर होगा | उसी प्रकार मनो  भगवान  ने दया का सागर हमारे ऊपर उड़ेल दिया है और हम दया में एकदम मग्न हो गए है |हमारा रोम रोम , जर्रा जर्रा पुलकित हो उठा है |
दया से आगे बढ़कर उनके प्रेम क़ी तरफ देखे -देखो,भगवान मुझ पर कितना प्रेम कर रहे है,हम उसके लायक ही नहीं,किन्तु भगवान मुझ अयोग्य,अनधिकारी पर कितने प्रेम भरी द्रष्टि से देख रहे है |भगवान केवल पात्र के ऊपर ही दया और प्रेम करे एस बात नहीं है | वे सब पर कृपा करते है | भगवान हमारे भी है और रावण के भी |पर रावण ने उन्हें शत्रु भाव से भजा पर उन्होंने उस पर भी कृपा क़ी तो सोचो हम तो उनसे प्रेम मांग रहे है तो वे क्या हम पर कृपा नहीं करेंगे ?
आप जहां भी जायें गे आपकी परछाई आपके साथ जाये गी. सिक्के खनके गे तो मुस्कराहट तो आये गी ना! बारिश होगी तो मिटटी की भीनी-भीनी खुशबु तो आये गी ना! बीज बोये गे तो फसल भी उगे गी! सूरज निकलने पर उसका प्रकाश और उसकी ऊष्मा मिले गी ही! सरोवर में नहाने से जल की शीतलता अपने आप मिले गी! आपको कोई प्रयतन नहीं करना होगा.ठीक उसी प्रकार नाम सुमिरन करेंगे  तो आत्मिक आनंद और प्रभु क़ी प्रसन्नता प्राप्त होगी ही |
क्रमश:

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