हरे कृष्ण
गोपाल....
प्रभु सुहृद है,कृपा निधन है,भक्तवत्सल है | हम भले ही उन्हें विस्मृत करने इ चुक करदेते है परन्तु वे तो हमें एक पल क लिए भी नही भूलते | वे तो हर समय हमारे अंग संग रहते है | कभी हमसे विलग नही होते | हम पर तो उनकी कृपा हर पल,प्रति पल बनी रहती है,बरसती रहती है परन्तु हमारी कृपणता की कोई सीमा नही है | कभी कभी तो घोर अज्ञानता के वशीभूत होकर हम उनके अस्तित्व पर भी प्रश्न उठाने लगते है | लेकिन वे तो इतने दयालु है,कृपालु है की ऐसी न माफ़ की जा सकने वाली भूल को भी माफ़ कर देते है | ऐसा तब होता है जब उक्त व्यक्ति के पूर्व जन्मो के संचित कर्मो का बोज अधिक बढ़ जाता है |
गोस्वामी तुलसी दस जी कहते है -
तुलसी पिछले पाप से हरि चर्चा नहि सुहाये |
जैसे ज्वर के वेग से भूख विदा हो जाय ||
यानि की पिचले जन्मो में किये हुए घोर पाप के कारन ही मनुष्य को भगवन की चर्चा उसी प्रकार अच्छी नहि लगाती जिस प्रकार ज्वर से ग्रस्त किसी रोगी को भूख नहि लगाती |कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार स्वथ्य व्यक्ति के लिए भूख लगना एक स्वाभाविक क्रिया हा उसी प्रकार मनुष्य जन्म में रहते भगवन का स्मरण करना भी प्राक्रतिक कि तरह होना चाहिए | अन्यथा यही समझा जाना चाहिए कि मनुष्य देह होते हुए भी वह पशु के सामान है |प्रभु के भक्त जन इस बात को बड़ी दृढ़ता के साथ जताते है कि उनकी अहैतुकी कृपा निरन्तर बरस रही है | प्रबु को पुकारने पर वो जरुर आते है |
कभी कभी भक्तो के मुख से ये प्रश्न सुनने को मिलता है कि हम प्रभु के लिए आंसू भी बहाते है फिर भी प्रभु नहि आते?
देखिये ऐसा इस लिए होता है कि अप जरुर प्रबु को ह्रदय से याद करते हो..आंसू भी बहाते हो पर वो इसलिए नही आते क्योकि अभी हमारी भक्ति पूरी तरह निष्काम नहि हुई है |
text 2011, copyright © bhaktiprachar.in