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Monday, December 30

sri chaitnay-shichashtak~1

हरे कृष्ण 
गोपाल ......



1. जो चित रूपी  दर्पण के मैल  का मार्जन करने वाले है,जो संसाररूपी महादावाग्नी को शांत करने वाला है, प्राणियों के लिए मंगलदायिनी कैरव चन्द्रिका को वितरण करने वाला है,जो विद्या रूपी वधु का जीवन-स्वरुप है और अनंदृपी समुद्र को प्रतिदिन बदने ही वाल है उस क्रिश्नासंकिर्तन की जय हो..जय हो |

2.प्राणनाथ ! तुम्हारी कृपा में कोई कसर नही और मेरे दुर्भाग्य में  कोई संदेह नहीं |भला, देखो तो सही तुमने "नंदनंदन" "व्रजचंद" मुरलीधर" "राधारमण"- ये कितने सुन्दर सुन्दर नम कानो को प्रिय लगनेवाले अपने मनोहारी नाम प्रकट किये है,फिर भी वे नाम रीते ही हो सो बात नही,तुमने अपनी पूर्ण ह्स्कती सभी नमो में समानरूप से भरदी है |जिसका आश्रय ग्रहण करे,उसी में तुम्हारी पूर्ण शक्ति मिल जाएगी |संभव है,वैदिक क्रिया-कलापों की भांति तुम उनके(नाम)  लेने में कुछ देश,कल या पात्र का नियम रख देते तो उसमे कुछ कठिनता होने का भय भी था..सो तुमने तो इन बातो का कोई भी नियम निर्धारित नहीं किया | तुम्हारी तो जीवो पर इतनी भरी कृपा और मेरा ऐसा दुर्दैव की तुम्हारे इन सुमधुर नमो में सच्चे ह्रदय से अनुराग ही उत्पन्न नहीं होता |


3.हरी नाम संकीर्तन करने वाले पुरुष को दो गुरु बनाने चाहिए -एक तो तरन को और दूसरा वृछ को | तरण से नम्रता और वृछ से सहिशुनता  की |

क्रमश:........
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Friday, December 23

ह्रदय द्रवीभूत~1

हरे कृष्ण
गोपाल.....
   

किसी का किसी के प्रति जब ह्रदय  पिघल जाता है तो उस समय उसकी वैसी ही दशा हो जाती है,जैसी चपड़े  या लाख के पिघल जाने पर हो जाती है |पिघले हुए चपड़े में जैसे रंग डाल दिया जाय,वह वैसे ही रंगवाला बन जाता है |यदि वह चपड़ा बिना पिघला हुआ हो तो उस पर चाहे कुछ भी डाल दिया जाय उसका कोई खास असर नहीं पड़ता | इसी तरह किसी का ह्रदय जब पिघल जाता है तब बहुत ही अच्छा रंग चढता  है |
हमें हरि का यानि भगवान का रंग चढ़ाना है |भगवान की कृपा से यदि आदमी का ह्रदय व्याकुल हो जाय तो उसका जीवन बहुत ही बदल जाय |यह लेख लिखते समय पूज्य राधा कृष्ण जी महाराज का के भजन सुन रहा हूँ | उसमे बताया की जब भक्त भगवद आवेश में होता है तो उसकी नजर जिस तरफ भी जाती है वह दिशा पवित्र हो जाती है,वह सम्पूर्ण भू मंडल को पवित्र कर देता है |प्रश्न यह है की ह्रदय इस प्रकार कैसे पिघले?
इसका उपाय यह है की जिन पुरुषो का ह्रदय भगवान के विरह की वय्कुलाता में पिघला है,उनके चिरित्र को करुनाभाव या प्रेम भाव से यद् करे| ऐसा करने ह्रदय एक दम पिघल जाता है और करुनाभाव से उनका चरित्र देखने से विरह की व्याकुलता मर भी ह्रदय पिघल जाता है | जैसे श्री रामचंद्र जी और भारत जी के चरित्र है,विशेषकर उनके मिलाप-प्रसंग का दृश्य सामने आते ही अपने -अप अश्रुपात होने लगता है|माता-पिता के भक्त श्रवणकुमार का प्रसंग आने से ह्रदय एकदम पिघल  जाता है| भगवान श्री रामचन्द्रजी के वनगमन का प्रकरण या रुक्मिणी जी का भगवान की विरह में विलाप-प्रकरण और गोपिओ का भगवान के विरह की व्यकुअलाता में रोने का प्रसंग उपस्थितहोने पर ह्रदय पिघल जाता है |प्रभु के कथा और इसप्रकार के प्रसंग और संवेदन शील प्रसंग हमारे ह्रदय को द्रवीभूत कर देते है | ऐसे प्रसंग अपने सद्गुरु से संतो  से बार बार सुनने चाहिए | जिस समय मन या ह्रदय एकदम पिघल jata है,उस समय ह्रदय में धारण किये गए भाव स्थायी रूप से सुस्थिर हो जाते है | इसलिए भगवन के प्रति प्रेम और श्रध्दा अपने ह्रदय में स्थापित करके रोम रोम में परिपूर्ण करके अपना जीवन बदल जय इसके लिए हमें करुनाभाव से समय समय पर भगवन के लिए रोना चाहिए,व्याकुल होना चाहिए,इसके लिए लगन से हमें रहना होगा क्योकि हमें उस को पाना है |क्रमश:

Tuesday, December 13

भगवान वश में कैसे हो ?

हरे कृष्ण 
गोपाल....

किसी को वश में करना  हो तो उनकी सेवा करनी होती है,गुण गाना होता है,आज्ञा का पालन करना होता है |सेवा से संत वश में हो जाते है,ब्रह्मा,विष्णु ,महेश सब प्रसन्न हो जाते है |किसी को वश में करना हो तो यह विद्या है |फिर भगवन को ही वश में क्यों न करे,जिससे सब वश में हो जाय | भगवान     कहते है जो  मेरी  भक्ति  करता है वह यदि मुझे बेचे तो मै बिकने के लिए तैयार हूँ-

बेचे तो बिक जाऊ नरसी म्हारो सिर धणी |
संसार के सब पदार्थ धन से मिलते है पर भगवन धन से नहीं  मिलते |स्वयं अपने -आप को भगवन अर्पण कर दे तो भगवान तो भगवान का यह नियम है की वे भक्त के वश में हो जाते है | भगवान को यदि खरीदना चाहते हो तो सब से बढकर यह विद्या है-सत्य बोलना,दुसरे स्त्री को माता के सामान मानना और भगवान के अधीन रहना |
सत्य वचन आधीनता परतिय मात समान |
इतनेमे हरी न मिले तुलसीदास जमान ||
एक ही बात ऐसी है जिसके धारण करने से सब अपने-आप आजाती है | राजा को बुलाने से सारी सेना आ जाती है | उसी तरह भगवान की भक्ति से सारे गुण और दैवी सम्पदा आ जाती है | और कुछ बने या न बने बस भगवान को हमेशा याद रखो |
उद्दालक ऋषि  के पुरता का नाम स्वेत्केतु था | वेद-वेदांत आदि पढकर आने के बाद उसने कहा की मै विद्वान् हूँ | अंहकार आ गया और पिता को मुर्ख समझ कर नमस्कार  नहीं किया | पिता ने कहा की बेटा!वह विद्या की सीखी की नहीं  जिस बात को जानने से सारी बात का ज्ञान हो जाये |लडके ने कहा यह तो नहीं पढ़ी |पिता बोले-एक परमात्मा का ज्ञान होने से सब का ज्ञान हो जायेगा |उन्होंने पहले ही सोच लिया कि वह ज्ञान होता तो अंहकार नहीं होता |
परमात्मा के ज्ञान से सरे ब्रह्माण्ड का ज्ञान हो जाता है|अपने तो यह समझ लो की जो समय गया सो गया,अब बाकि समय हरि में लगा दो |अब तो यही नीची कर लो की जो कुछ  अच्छा या बुरा बीत गया सो बीत गया,अब बाकि समय चलते,उठाते,बैठते खाते बस हरि नाम का सुमिरन करो| अपने अप को भगवान में लगा दो|
मै आशिक तेरे रूप पर बिन मिले सबर नहीं होती |

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