हरे कृष्ण
गोपाल.....
हम अपने प्रभु को कैसे पहचाने? बड़ा अलग विषय है |
संतो ने कहा है-
सब जग इश्वर रूप है,भलो बारो नहीं कोय|
जैसी जाकी भावना तैसो ही फल होय||
यह संपूर्ण संसार इश्वर रूप है|इसमें भला-बुरा,अच्छा-मंदा,गुण दोष अदि चीजे है ही नही|
भगवन ने कहा ही है की मुझे जो जिस भाव से भजता हूँ मै वैसा हो जाता हूँ |
वैसे हम संसार में भले बुरे दो रूपों को देखते है तो भगवन भी भले या बुरे-दो रूपों में प्रकट हो जाते है |हम भले बुरे को न देख कर भागन को देखते है तो भी भगवन अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो जाते है|
एक संत थे|जब उनसे कोई कहता कि"महाराज!आप तो बहुत बड़े महात्मा है" तो वे कहते"रामजी !"
कोई कहता कि आप बड़े ठग हो तो वे कहते "रामजी ! " कोई कहता कि आप बहुत अच्छे तो कहते रामजी और कोई बुरा कहे तो कहते रामजी |यानि कि सब कुछ रामजी ही है..फिर उसमे क्या अच्छा और क्या बुरा?
"जैसी जाकी भावना,तैसो ही फल होय|" भवन ही तो बढ़िया करनी है तो हम भावना बढ़िया ही रखेंगे |
इस विषय पर कुछ लोग सोचते है कि संसार में कई लोग दुराचारी भी है तो उनमे भगवान कैसे दिखे ?
देखिये मै इस प्रश्न का जवाब देनेमे असमर्थ हूँ पर आपको संतो के जवाब कि प्रति यंहा दे रहा हूँ |
ये प्रश्न स्वामी रामसुखदास जी से पूछे गये थे तब उनके जवाब-
प्रश्न-संसार में कोई दुराचारी सीखे तो उसको भगवत्स्वरूप कैसे माने?
उतर-ऐसा मनन चाहिए कि वे भगवान ही है,पर अभी कलयुग कि लीला कर रहे है |अभी कलयुग है,इसलिए वे युग के अनुसार लीला करते है | भगवान ने वाराह रूप धारण किया तो वाराह कि तरह ही आचरण किया | वाराह भगवान को देखकर हिरन्याच उनको " वनगोचार मृग" (जंगली जानवर) पुकारता है तब भगवान उसको "ग्रामसिंह" (कुत्ता) कह कर पुकारते है|वे जैसा रूप धारण करते है वैसी ही लीला करते है |
प्रश्न-संसार को परमात्मा का स्वरुप भी कहे है और दुखो का घर भी कहते है|अगर यह परमात्मा का स्वरुप है तो दुखो का घर कैसे और दुखो का घर है तो परमात्मा का स्वरुप कैसे?
उतर-ये दोनों बाते ठीक है | जो संसार से कुछ नही चाहता,प्रत्युत दूसरो कि सेवा करता है,उनको सुख देता है..उसके लिए संसार सुख स्वरुप है और जो संसार से सुख लेना चाहत है.उसके लिए संसार दुखो का घर है|सुख चाहने वाले को दुःख मिलेगा ही यह अकाट्य नियम है|
भक्ति योग कि नजर से यह सब संसार भगवान का स्वरुप है और ज्ञान योग कि नजर से यह संसार असत,जड़, तथा दुःख रूप है|
सब जग इश्वर रूप है,भलो बारो नहीं कोय|
जैसी जाकी भावना तैसो ही फल होय||
यह संपूर्ण संसार इश्वर रूप है|इसमें भला-बुरा,अच्छा-मंदा,गुण दोष अदि चीजे है ही नही|
भगवन ने कहा ही है की मुझे जो जिस भाव से भजता हूँ मै वैसा हो जाता हूँ |
वैसे हम संसार में भले बुरे दो रूपों को देखते है तो भगवन भी भले या बुरे-दो रूपों में प्रकट हो जाते है |हम भले बुरे को न देख कर भागन को देखते है तो भी भगवन अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो जाते है|
एक संत थे|जब उनसे कोई कहता कि"महाराज!आप तो बहुत बड़े महात्मा है" तो वे कहते"रामजी !"
कोई कहता कि आप बड़े ठग हो तो वे कहते "रामजी ! " कोई कहता कि आप बहुत अच्छे तो कहते रामजी और कोई बुरा कहे तो कहते रामजी |यानि कि सब कुछ रामजी ही है..फिर उसमे क्या अच्छा और क्या बुरा?
"जैसी जाकी भावना,तैसो ही फल होय|" भवन ही तो बढ़िया करनी है तो हम भावना बढ़िया ही रखेंगे |
इस विषय पर कुछ लोग सोचते है कि संसार में कई लोग दुराचारी भी है तो उनमे भगवान कैसे दिखे ?
देखिये मै इस प्रश्न का जवाब देनेमे असमर्थ हूँ पर आपको संतो के जवाब कि प्रति यंहा दे रहा हूँ |
ये प्रश्न स्वामी रामसुखदास जी से पूछे गये थे तब उनके जवाब-
प्रश्न-संसार में कोई दुराचारी सीखे तो उसको भगवत्स्वरूप कैसे माने?
उतर-ऐसा मनन चाहिए कि वे भगवान ही है,पर अभी कलयुग कि लीला कर रहे है |अभी कलयुग है,इसलिए वे युग के अनुसार लीला करते है | भगवान ने वाराह रूप धारण किया तो वाराह कि तरह ही आचरण किया | वाराह भगवान को देखकर हिरन्याच उनको " वनगोचार मृग" (जंगली जानवर) पुकारता है तब भगवान उसको "ग्रामसिंह" (कुत्ता) कह कर पुकारते है|वे जैसा रूप धारण करते है वैसी ही लीला करते है |
प्रश्न-संसार को परमात्मा का स्वरुप भी कहे है और दुखो का घर भी कहते है|अगर यह परमात्मा का स्वरुप है तो दुखो का घर कैसे और दुखो का घर है तो परमात्मा का स्वरुप कैसे?
उतर-ये दोनों बाते ठीक है | जो संसार से कुछ नही चाहता,प्रत्युत दूसरो कि सेवा करता है,उनको सुख देता है..उसके लिए संसार सुख स्वरुप है और जो संसार से सुख लेना चाहत है.उसके लिए संसार दुखो का घर है|सुख चाहने वाले को दुःख मिलेगा ही यह अकाट्य नियम है|
भक्ति योग कि नजर से यह सब संसार भगवान का स्वरुप है और ज्ञान योग कि नजर से यह संसार असत,जड़, तथा दुःख रूप है|
text 2011, copyright © bhaktiprachar.in