Monday, December 30

sri chaitnay-shichashtak~2

हरे कृष्ण
गोपाल.....

न धनं न जनं न सुंदरी कविता  व जगदीश कामये |
मम जन्मनि जन्मनिश्वरे भवतादभाक्तिराहैतुकी त्वयि ||
संसार में सब सुखो की खानी धन है | जिसके पास धन है उसे किसी बात की कमी नहीं | धनि पुरुष के पास  गुनी,पंडित तथा भांति भांति की कलाओ के कोविद  आप से आप आ जाते है | धन से भी बढकर शक्ति शालिनी जन-सम्पति है | जिसकी  आज्ञा  में दस आदमी कम करते है | जिसके कहने से दस आदमी कुछ पालो में अपना रक्त बहादे,वह बड़े बड़े धनिकों की परवाह नही करता | उस धन सम्पति से बढ कर आकर्षक सुंदरी है | सुंदरी  संसार में किस की मन को आकर्षित नहीं कर सकती |  अच्छे-अच्छे  करोडपतियो  के कुमार सुंदरी के तनिक से कटाछ पर लाखो रुपयों को  पानी की तरह बहा देते है | हजारो वर्षो की संचित की हुई  तपस्या को अनेको तपस्विगन उसकी टेडी भोहो के ऊपर वार देने को बाध्य होते है | धनि हो चाहे गरेब,पंडित हो चाहे मुर्ख  , शूरवीर हो  अथवा निर्बल,जिसके ऊपर भी भोंहे रूपी कमान से कटाछ रूपी बन को खींचकर सुंदरी ने एक बार मर दिया प्राय: वह मूर्छित हो ही जाता है | उस सुंदरी से भी बढ़ कर कविता है | जिसको कविताकामिनी ने अपना कान्त कहकर वरन कर लिया है, उसके मन में त्रैलोक्य की सम्पति भी तुच्छ  है | वह धन हीन होने पर भी शहंशाह है | प्रकृति उसकी मोल ली हुई चेरी है | वह राजा है,महाराजा है,देव है और विधाता है | इस संसार में कमनीय कवित्व-शक्ति किसी विरले ही भाग्यवान पुरुष को प्राप्त हो सकती है |               किन्तु प्यारे ! मै तो धन,जन,सुंदरी तथा कविता इनमे से किसी भी वास्तु की अशक्ति नहीं रखता | तब तुम पूछोगे"तो तुम और चाहते क्या हो?" इसका उतर यही है जगदीश! मै कर्मबंधनो को मेटने की प्रार्थना नही करता | मेरे प्रारब्ध को मिटा दो,ऐसा भी नहीं कहता | भले ही मुझे चौरासी लाख क्या चौरासी अरब योनियों में भ्रमण करना पड़े,किन्तु प्यारे प्रभु ! तुम्हारी स्मृति ह्रदय से न भूले | तुम्हारे पुनीत पदपद्मो का ध्यान सदा भाव से ज्यो का त्यों बना रहे | तुम्हारे प्रति मेरी अहैतुकी भक्ति उसी प्रकार बनी रहे मै सदा कहता रहू-
श्री कृष्ण! गोविन्द! हरे ! मुरारी! हे नाथ ! नारायण! वासुदेव !

क्रमश:
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