मैंने जो कुछ अनुभव किया है और संतो कि कृपा से जो उनके संग का लाभ हुआ है उस से मै आप सब को ये बता रहा हूँ | छोटे मुंह बड़ी बात कर रहा हूँ ,किसी भी प्रकार कि गलती के लिए आप से माफ़ी मांगता हूँ | आप के कमेन्ट का इंतजार रहेगा |
हम धुल से भी नीचे है इस भाव को लेकर उन संत महात्माओ से हम बड़ी भारी (महान) वस्तु ले सकते है| हम छोटे बनाकर, जिज्ञासु बनकर,अपनी बुद्धिमानी,हठ छोड़ करकर केवल संत महात्माओ के अधीन हो
जावे तो हमें संत बना देते है|
कहा भी है-
पारस में अरु संत में, बड़ो अन्तरो जान |
वो लोहा कंचन करे,वो करे आप समान ||
पारस और लोहेमे बड़ा अंतर है| पारस लोहे को सोना तो कर सकता है| किन्तु वह सोना दुसरे लोहे को सोना नहीं बना सकता परन्तु संत-महापुरुषों की कृपा प्राप्त किये हुए पुरुष तो ऐसे संत बन जाते है कि वे दुसरे लोगो को भी संत बना देते है| वंहा सोना ही नही,पारस की खान खुल जती है|
एक बात और है कि धनि व्यक्ति ये नही चाहेगा कि और भी कोई धनि बने पर संत-महापुरुष ऐसे कि उनको जो कुछ लाभ हुआ है,उनको वे सब को बताना चाहते है | उनके मन में वह सब बताने कि उत्कंठा होती है | उनकी कोई बात मन लेता है तो वे बड़े खुश होते है और उनकी इसी ख़ुशी में जीव का कल्याण भरा होता है|
ऊपर कि सेवा,दंडवत करना,नमस्कार करना ,रज्जी उठाओ , जूठन खाना - ये सब तब तक फालतू है जब तक हम उनकी कही बात को जीवन में नहीं उतारते हम उनकी बात मान लेंगे तो हम भी दुनिया का उद्धार कर सकते है हा उनकी राज कि महिमा नही भूल सकते पर फिर भी मूल तो उनकी कही बात को मानना है|
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