ek bhaw se prabhu ka bhajan |
हरे कृष्ण...गोपाल......
कहावत है कि " जिस गाँव में नही जाना है उसका रास्ता ही क्यों पूछा जाये?" ऐसा पक्का हो जाये कि " अपनी उम्र में ये अमुक काम हमें करना ही नही है " तो वह कार्य हूँ ही कैसे सकता है ? चाय अज से नही पीना है तो नही पीना ? फिर क्यों पियेंगे चाय ?
हर एक व्यवहार में जो विचार कर ले बस वैसा ही करे- यो करने पर विचारो कि एक परिपक्वता हो जाती है फिर संकल्प पक्का हो जाता है| छोटे छोटे कामो में इस प्रकार कि दृढ़ता बनाने से हमारा स्वभाव भी अच्छा होगा और ये सुधर जायेगा तो बड़ी से बड़ी बाते सही हो जाएगी |
अप को एक बात जो बहुत जरुरी है वो बताना चाहता हूँ मेरे बहुत से भाई और बहिन कुछ जप-पाठ नित्य करते है,परन्तु समझते है कि ये तो घंटे-डेडका काम है | बचे हुए समय में समझाते है कि हम तो गृहस्थ है,हमें अमुक अमुक काम करने है,घंटे डेढ़ घंटे भगवन का भजन कर लेना,कीर्तन करलेना है | सत्संग मिल गया तो प्रतिदिन कर लिया | बारह महीने से मिल गया तो बारह महीने से कर लिया | सत्संग कर लिया , एक पारी निकल गयी ऐसा भाव रहता है| इस कारन से हमारे अन्दर विशेष प्रभाव नही होता, हम उसकी महिमा को नही जान पाते| इसलिए सत्संग धारण भी नही हो पाता | पर ऐसा भाव रखना चाहिए कि हमें तो निरन्तर भजन करना है|जो कुछ कार्य करना है वो भी भगवन का ही है और उन्ही के लिए ही कर रहे है |इस तरह के भाव से भगवन के लिए सब काम किया जाये तो उस से महान लाभ प्राप्त हो सकता है |
(किसी भी प्रकार कि गलती के लिए माफ़ी मांगता हूँ )
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