हरे कृष्ण.....
गोपाल ......
एक सत्संगी भाई ने एक व्यक्ति को सत्संग में चलने को कहा तो वह बोला-"मै पाप नही करता,अत: मुझे सत्संग में जाने की आवश्यकता नही है| सत्संग में वे जाते है जो पापी होते है |वे सत्संग में जाकर अपने पाप को दूर करते है | जिस प्रकार रोगी व्यक्ति अस्पताल में जाते है और अपना रोग दूर करते है| निरोगी व्यक्ति को अस्पताल में जाने की क्या जरुरत ? जब हमने पाप किया ही नही तो हमें सत्संग में जाने की क्या जरुरत ?यह बात वैसे तो ठीक दिखती है |
अब इस बात को ध्यान से समझते है| श्री मद्भागवत में एक शलोक आया है-
"क उतमश्लोकगुननुव|द|त पुमान विरज्यते विना पशुघ्नात"
" जिनकी तृष्णा की प्यास सर्वदा के लिए बुझ चुकी है,वे जीवन्मुक्त महापुरुष जिसका पूर्ण प्रेम से अतृप्त रहकर गन किया करते है,मुमुचुजनो के लिए जो भवरोग का रामबाण औषध है तथा विषयी लोगो के लिए भी उनके कान और मन को परम अहलाद देने वाला है,भगवन श्री कृष्ण चन्द्र के ऐसे सुन्दर,सुखद,रसीले,गुणानुवाद से पसुघाती अथवा आत्मघाती मनुष्य के अतिरिक्त और कौन ऐसा है जो विमुख हो जाये,उससे प्रीति न करे ?"
देखिये, जो निरंतर प्रभु का ध्यान करते है वो भी ध्यान छोड़ कर भगवन के चरित्र सुनते है | जहा भगवन की कथा होती है वंहा भगवान,भगवान के भक्त,संत-महात्मा और नारद संकड़ी,जीवन्मुक्त-महापुरुष भी खींचे चले आते है क्यों की यह अत्यंत मनमोहिनी है|
जब गरुड़ जी ने भगवान श्री राम को नागपाश से बचाया तो उन्हें मोह हुआ की ये कैसे भगवान है?
उसी प्रकार जब सती जी ने भगवान श्री राम को वन वन में "हा सीते ! हा सीते !" कहते सुना तो उन्हें भी मोह हुआ की ये कैसे भगवान जो अपनी स्त्री को वन-वन में खोजते फिर रहे है और उसके वियोग में रुदन कर रहे है|
जब भगवान के चरित्र को देखा तो दोनों को मोह हुआ | पर जब उन्होंने उनके चरित्र को सुना,समझा तब कंही जाके ये मोह दूर हुआ और इससे एक बात और पक्की हुई की उनके खुद के दर्शन से ज्यादा उतम उनकी कथा सुनना है क्यों की उनके दर्शन से मोह पैदा हुआ और उनके चरित्र , कथा सुनने से दूर हुआ|
भगवान की कथा गरुड़,सती अदि के मोह को दूर करती है तो हमारे मोह को भी दूर करेगी और जिनको मोह नही हुआ है वे पुरुष इसके पक्के अधिकारी है कि वे कथा सुने |
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