हरे कृष्ण
गोपाल .......
भगवान को यदि अंत में भी याद कर ले तो भी जीव नि:संदेह भगवान को प्राप्त हो जाता है | अन्तकाल में भी याद करले तो बेडा पार है-
"अन्तकाले मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम |
य : प्रयाति स मद्भाव याति नास्त्यत्र संशय: ||"
अन्तकाल के स्मरण से भी हम भगवान को प्राप्त कर सकते है क्योकि हमारा भगवन से घनिष्ट सम्बन्ध है | भगवान का अंश होने के कारण यह भगवान के सन्मुख होते ही भगवान को प्राप्त हो जाता है | इसमें संदेह की कोई बात नहीं है | फिर यह लौटकर क्यों आता है? इसमें खास कारण यह है की संसार की चीजो में अपनापन कर लेने से इसको विवश होकर यहाँ आना पड़ता है | जब जीव का मन इस संसार में खिंच जाता है तो भगवान फिर वैसा ही मौका दे देते है | इसलिए उचित यही है की यहाँ रहते हुए नसे थोडा तो हमें बचने की कोशिश करनी चाहिए |
ऐसा मने की ठाकुर जी का संसार है,ठाकुर जी का परिवार है,थ्गाकुर जी के रूपये है,ठाकुर जी के घर है| हम तो ठाकुर जी का कम करते है| मुनीम की tarah रहे|malik na bane | जो कम करे उसका अहसान ठाकुर जी पर रखे की महाराज ! हम आपका कम करते है | हमारा यहाँ क्या है? परिवार आपका,घर आपका,जमीन आपकी | यही सच्ची बात है,क्योकि जब जन्मे थे तब एक धागा भी मेरे पास नही था| और मरेंगे तो लाश भी यही पड़ी रहेगी | लाश को साथ भी नहीं ले जा सकते तो धन और सम्पति को कैसे साथ में लेजायेंगे ?
साथ में लाये नही,साथ में ले जा सकते नही और यहाँ रहते हुए भी इन सबको अपने मन मुताबिक बना सकते नही | आपका देख ही रहे हो आपके लाडले लड़के-लड़की आपका कहना नहीं मानते,स्त्री नही मानती,कुटुम्बी-जन नही मानते | तो सिद्द्ध हुआ की अप इनको अपने मन-मुताबिक नही बना सकते और जितने दिन चाहे साथ में रख नहीं सकते,बदल नहीं सकते| अत: मानना होगा की ये मेरे सब नही है,भगवान के है |
जब मै छोटा था तब एक संत के बारे में सुना था की उन्हें जब भी कोई उनकी बुराई बताता तो वे तुरंत ठाकुर जी के पास जाते और उसको भी ले जाते जो उन्हें उनकी बुराई बताता | वे ठाकुर जी को जा कर कहते की "हे ठाकुर अब अप ही देख लो | ये सबुत है कि मेरे अन्दर कितने अवगुण है , आप मुझ पर कृपा करो प्रभु" | उन संत का नाम तो याद नही है माफ़ी मांगता हूँ पर उनकी बात फिर ठाकुर जी ने सुनी भी | क्रमश:.....
मैंने ठाकुर जी के लिए एक भजन लिखा है आप जरुर पढ़े इस लिंक पर क्लिक करे-
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