हरे कृष्ण
गोपाल ......
1. जो चित रूपी दर्पण के मैल का मार्जन करने वाले है,जो संसाररूपी महादावाग्नी को शांत करने वाला है, प्राणियों के लिए मंगलदायिनी कैरव चन्द्रिका को वितरण करने वाला है,जो विद्या रूपी वधु का जीवन-स्वरुप है और अनंदृपी समुद्र को प्रतिदिन बदने ही वाल है उस क्रिश्नासंकिर्तन की जय हो..जय हो |
2.प्राणनाथ ! तुम्हारी कृपा में कोई कसर नही और मेरे दुर्भाग्य में कोई संदेह नहीं |भला, देखो तो सही तुमने "नंदनंदन" "व्रजचंद" मुरलीधर" "राधारमण"- ये कितने सुन्दर सुन्दर नम कानो को प्रिय लगनेवाले अपने मनोहारी नाम प्रकट किये है,फिर भी वे नाम रीते ही हो सो बात नही,तुमने अपनी पूर्ण ह्स्कती सभी नमो में समानरूप से भरदी है |जिसका आश्रय ग्रहण करे,उसी में तुम्हारी पूर्ण शक्ति मिल जाएगी |संभव है,वैदिक क्रिया-कलापों की भांति तुम उनके(नाम) लेने में कुछ देश,कल या पात्र का नियम रख देते तो उसमे कुछ कठिनता होने का भय भी था..सो तुमने तो इन बातो का कोई भी नियम निर्धारित नहीं किया | तुम्हारी तो जीवो पर इतनी भरी कृपा और मेरा ऐसा दुर्दैव की तुम्हारे इन सुमधुर नमो में सच्चे ह्रदय से अनुराग ही उत्पन्न नहीं होता |
3.हरी नाम संकीर्तन करने वाले पुरुष को दो गुरु बनाने चाहिए -एक तो तरन को और दूसरा वृछ को | तरण से नम्रता और वृछ से सहिशुनता की |
क्रमश:........
post views
text 2011, copyright © bhaktiprachar.in