हरे कृष्ण
गोपाल ...
हे प्रभु जैसे लोभी आदमी कूड़े-कचरे में पड़े पैसे को भी उठा लेता है,ऐसे ही अप भी कूड़े-कचरे में पड़े हम जैसे को उठा लेते हो| थोड़ी बात से ही अप रीझ जाते हो-"तुम्ह रीझहु सनेह सुठि थोरे" कारण की आपका स्वभाव है-
रहत न प्रभु चित चुक किये की| करत सुरति सय बार हिए की ||
अगर आपका ऐसा स्वभाव नहीं होता तो हमें आपके नजदीक भी न आ सके: नजदीक आने की हिम्मत भी न हो सके |आप हमारे अवगुणों की तरफ देखते ही नहीं | थोडा सा गुण हो तो अप उस तरफ देखते हो| वह थोडा सा भी दृष्टि से है | हे नाथ | हम विचार करे तो हमारे में राग है काम क्रोध है,लोभ मोह है,अभिमान हैआदि कितने ही दोष भरे पड़े है | हमारे से आप ज्यादा जानते हो,पर जानते हुए भी आप उनको मानते नहीं-जन अवगुण प्रभु मन न काउ ,इसी से हमारा कम चलता है,प्रभो कंही आप देखने लग जाओ की यह कैसा है तो प्रभु!पोल-हो-पोल निकलेगी |
हे नाथ | बिना आपके कौन सुनाने वाला है?कौन जानने वाला है|हनुमान जी विभीषण जी से कहते हकी मई तो चंचल वानर कुल में पैदा हुआ हूँ | प्रात: काल जो हम लोगो का नाम भी ले ले तो उसे उस दिन उसको भोजन न मिले | ऐसे अधम होने पर भी भगवन मेरे पर कृपा की|भगवन बहुत आप दयालु हो |
"रुतबा ये मेरे सर को तेरे दर से मिला है..
हलाकि मेरा सर भी तेरे दर से मिला है
ओरो को जो मिला है वो मुकदर से मिला है
लेकिन हमको तो मुकदर भी तेरे दर से मिला है "
हर एक दरबार में दीं का आदर नहीं होता | जब तक हमारे पास कुछ धन सम्पति है,कुछ गुण है तभी तक दुनिया आदर देती है पर हे कृपालू भगवन आपके दरबार में ऐसा नहीं है |
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