हरे कृष्ण
गोपाल ....
एक मूर्तिकार ने अपने पुत्र को मूर्ति कला सिखाकर उसे काम में चतुर बना दिया दोनों की मुर्तिया बाजार में खूब बिकने लगी | पिता की मूर्ति पांच रुपये में और पुत्र की मूर्ति तीन रुपये में बिकती थी |पिता ने सोचा कि पुत्र को अभी और उन्नति करनी चाहिए | एक दिन उसने पुत्र से कहा-"बेटा ! तुम अपनी मूर्तिकला में सुधर करो | जरा अच्छे रंग लगाओ और आकृति पर भी ध्यान दो | देखो मेरी मूर्ति पांच रुपये में और तुम्हारी मूर्ति तीन रुपये में बिकती है |"
पुत्र को पिता कि बात में सच्चाई नजर आई और उसने अपने मूर्तिकला में सुधार किया और उसकी मूर्ति चार रुपये में बिकने लगी |कुछ दिन बाद पिता ने फिर वही बात कही और उसने अपनी मूर्तिकला में और सुधार किया और उसकी मूर्ति धीरे धीरे छ: रुपये में बिकने लगी | कुछ दिन बाद पिता ने फिर उसे डांट दिया तो उसने कहा कि मेरी मुर्तिया छ: रुपये में बिकती है पर आपकी केवल पांच रुपये में |
पिता ने कहा कि -बेटा ! मै चाहता था कि तेरी मुर्तिया दस रुपये में बीके परन्तु तुमने अपनी सीमा बंधकर अपनी उन्नति का रास्ता बंध कर दिया |
इसी तरह प्रभु के नाम को लेकर यह कहना की हमारा ये काम हो गया है, ठीक नही है हमें यही भाव रकहना चाहिए कि
प्रभु का नाम एक बार भी लेना प्रभु प्राप्ति में सहायक है और भक्ति के मार्ग में कभी रुकना नहीं |
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