Thursday, February 16

वात्सल्य






हरे कृष्ण 
गोपाल..


बंगाल के किसी गाँव में एक सोलह वर्ष की युवती रहती थी । जिस साल उसका विवाह हुआ उसी साल उसके पति का देहांत हो गया । वह इस आकस्मिक विपति के कारन अत्यंत दुखी हो गई ।
एक दिन वह अकेली बैठी रो रही थी । इसी समय उसको लगा मानो कोई कह रहा है कि तुम पास में रहने वाले महात्मा के पास जाओ ।इस अंत: प्रेरणा से वह महात्मा के पास जाकर फूट-फूट कर रोने लगी ।
तब महात्मा ने पुचा-"बेटी ! तुम रो क्यों रही हो ?"
युवती ने उत्तर  दिया -"महाराज मेरे कोई नही है।।महात्मा-"बेटी तुम इतनी झूठ क्यों बोल रही हो ? तुम्हारे जैसी झूठी तो मैंने आजतक कभी देखी ही नहीं । "
यह सुनते ही बेचारी युवती सकपका गयी । तब महात्मा ने कहा-" बेटी! तुमने यह कैसे कहा कि मेरे कोई नही है ।क्या भगवन भी मर गए है ।वे तो सबके अपने है ।सबके परम आत्मीय है । जिसके कोई नहीं होता वे तो उसके होते ही है । तुम उनका चाहे जिस रूप में भजन कर सकती हो ।भजन करोगी तो सदस उनको अपने पास पाओगी । तुम चाहो तो उन्हें अपना बेटा बना लो "।
युवती ने बहुत  सोचकर भगवन को अपना पुत्र बना लिया ।अब वह प्रतिदिन भगवन के लिए भोजन बनातीऔर थाल  में परोसकर अपने गोपाल को बुलाती ।उसे उनुभव होता मानो गोपाल को बुलाती है । उसे अनुभव होता मानो गोपाल रोज आकर उसको मैया का दिया भोजन बड़े चाव से खता है । इस प्रकार तीस साल बीत गये । अब वह युवती बूढी हो गई ।एक बार वह रामकृष्ण परमहंस के दर्शन करने गयी । गोपाल देर होने से भूखा न रह जाये इसलिए उसने अपने गोपाल के लिए थोड़ी-सी दाल और चावल साथ ले लिए । सोचा, खिचड़ी बनाकर खिला दूंगी गोपाल को ।
जब वह परमहंस जी के यहाँ पहुची तब उसने देखा कि बहुत बड़े-बड़े आदमी उनके चारो और बैठे है ।यह देख कर वह वापस जाने लगी । इसी समय स्वाम परमहंस जी  अपने आसन से उछाले और उसको बुला लाये तथा कहने लगे कि "माता ! तुम मेरे लिए खिचड़ी बनाओ । मुझे बड़ी भूख लगी है ।" बिचारी वृद्धा कृतार्थ हो गई । परमहंस जी उसे चौके में ले ए और कहने लगे--
"माता ! जल्दी बनाओ ।"
खिचड़ी तैयार हो गई तो उसने एक पत्तल में उसे परसा किन्तु परमहंस जी को बुलाने में उसे संकोच होने लगा । परमहंस जी वृद्धा के मन कि बात जन गए और स्वाम ही आकर खिचड़ी खाने लगे । थोड़ी देर बाद वृद्धा ने देखा कि परमहंस के स्थान पर उसका गोपाल प्यारा बैठा है । वह ज्यो ही पकडे दौड़ी कि वह भाग गया तबसे वह पागल सी रहने लगी । कभी कहती -" उसने खाकर हाथ नहीं धोये,कभी कहती कि वह इत्र कि शीशी चुरा लाया ।" ऐसी दशा होने के बाद कि एक चमत्कारपूर्ण घटना यह है -
लोगो में बात फैल गई थी कि बुढिया को भगवन को दर्शन होते है । अत: एक बार कुछ लोगो ने उसे भगवन के दर्शन करने के लिए प्रार्थना की। उसने भगवन से कहा । किन्तु उन्होंने ऐसा भाव प्रकट कर लिया मानो वे दर्शन देना नहीं चाहते तथापि वृद्धा की बात का आदर करने के लिए वे एक क्षण में के लिए वृद्धा के सामने अदृश्य हो गए और कही से एक इत्रकी शीशी ले आए । वृद्धा यह देख कर बोली कि-"यह इतर तू कहा से चुरा लाया ?" यह सुनते ही गोपाल ने शीशी फोड़ दी । लोगो को दर्शन नही हुए किन्तु सभी को शीशी फूटने का शब्द सुनाई पड़ा तथा इतर कि सुगंध चारो और फैल गयी ।
उस वर्धा कि दशा जब तक वह जीवित रही-ऐसी ही रही ।





 किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए क्षमा है ।
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