Sunday, September 25

सत्संग की आवश्यकता~2




 हरे कृष्ण
 गोपाल....
सत्संगति सब मैलो को दूर करती है  परन्तु सत्संग करते रहने से|
जिस मिठाई को हम चखे ही नही,उसका स्वाद हम कैसे जान सकते है | ऐसे ही जिन्होंने सत्संग किया ही नही वे इसकी विशेषता नही जानते,फिर भी कहते है की हमने बहुत सत्संग सुना है | तो समझ लेना चाहिए की उन्होंने सत्संग क महिमा नही जानी अब तक|-
राम चरित जे सुनत अघाही | रस विशेष जाना तिन्ह नाही ||
"मनुष्य भगवन के चरित्र को सुनते है और तृप्त हो जाते है,उन्होंने प्रभु की कथा का विशेष रस जाना ही नही |
अन्यथा -
जिन्ह के श्रवन समुद्र समाना| कथा तुम्हारी सुभग सरी नाना ||
भारही निरन्तर होही न पूरे....|

"आपकी कथा नदियों के समान और उन सत्संग प्रेमियों के कण ऐसे समुद्र के समान है,जो निरन्तर कथा रूपी नदियों के गिरने पर भी कभी पूरा नही भरते | उनके तो कथा सुनने की तृष्णा अधिक-अधिक बदती है|राजा प्रथू  ने भगवान  की कथा सुनने के लिए दस हजार  कान मांगे |
सत्संग की महिमा में भगवन शिव रामजी से मांगते है -
बार बार बर मअगाऊ हरषि देहु श्रीरंग |
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सत्संग ||

भगवन शंकर को  कोन सा पाप दूर करना था| कोन सी साधना सीखनी  थी ? जो वे सदा सत्संग चाहते   है |
भगवन शिव को जब कोई कथा सुनाने वाले मिलते है तो कथा सुनते है और सुनने वाले मिले तो सुनाते है |

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