Tuesday, September 27

सत्संग की आवश्यकता ~3


 हरे कृष्ण....
 गोपाल...

एक भक्त हुए  है -जयदेव कवि | "गीत गोविन्द" उनका बने हुआ  बहुत सुन्दर संस्कृत ग्रन्थ है | भगवान जगन्नाथ स्वयं उनके "गीत-गोविन्द" को सुन्त्ते थे | भक्त  की बात  भगवान ध्यान देकर सुनते है | एक मालिन थी,उसको  "गीत-गोविन्द" का एक पद यद् हो गया | वह बैगन तोड़ती जाती और पद गाती जाती थी | तो ठाकुर जी उसके पीछे-पीछे चलते और पद सुनते | उन्होंने पूछा-प्रभो!आपके मंदिर में रहते हुए यह वस्त्र कैसे फट गया|" ठाकुर जी बोले-"बैगन के खेत में उलझ कर फट गया |" पुजारी ने पूछा कि "आप बैगन के खेत में क्या कर रहे थे?" ठाकुर जी ने बता दिया, मालिन "गीत गोविन्द" का पद गा रही थी,अत: सुनाने चला गया | वह चलती तो मै भी उसके पीछे-पीछे डोलता,जिस से कपड़ा फट गया | ऐसे स्वयं भगवान भी सुनते है | भगवान कि कथा सुनाने के अधिकारी भक्त है,ऐसे ही भक्त कि कथा सुनाने के अधिकारी-भगवान होते है | जहा भक्तो की चर्चा होती है भगवान स्वयं आते है |
सूर्योदय होता है तो अंधकार दूर होता है,किन्तु जबवह बाहरी अंधकार होता है,पर जब सत्संग रूपी सूर्योदय होता है तो उससे भीतर में रहने वाला अँधेरा दूर हो जाता है | पाप दूर हो जाते है|संकाए दूर हो जाती है -
राम माया सतगुरु दया,साधू संग जब होय|
तब प्राणी जाने कछु,रह्यो विषय रस भोय ||

भगवान और संतो की जब पूर्ण कृपा होती है तब सत्संगति   मिलती है-
संत बिसुद्ध मिलही परि तेहि | चित्वाही राम कृपा करी जेही ||
विभीषण जी ने भी कहा है-
अब मोहि भा भरोस हनुमंता|बिनु हरी कृपा मिलही नहि संता ||
"भरा सत्संग का दरिया,नहा लो जिसका जी चाहे,
हजारो रतन बेकिमत भरे आला से आला है;
लगा कर ज्ञान का गोता,निकालो जिसका जी चाहे ||"

सत्संग रूपी दरिया में बहुत बढ़िया बढ़िया रत्न है|इसमें ज्ञान की डुबकी जितनी लगायेंगे उतनी ही विशेष बाते मिलेगी|सुनाने से तो मिलती ही है और सुनाने से भी मिलती है|सुनाने में भी ऐसी-ऐसी बाते विशेष बाते पैदा होती है की बड़ा भारी लाभ होता है |
संत समागम हरी कथा,तुलसी दुर्लभ दोय|
सूत दारा अरु लक्ष्मी,पापी के भी होय||
भगवान की कथा और सत्संग ये दो दुर्लभ वस्तुए है| पुत्र और स्त्री ओत धन तो पापी मनुष्य के प्रारब्धानुसार होते ही है|रावन का भी बहुत बड़ा राज्य था,ये कोई बड़ी बात नहि |बड़ी बात है प्रभु का स्मरण होना,चिंतन होना|संत तो हमेशा ये मांगते है-
राम जी साधू सांगत मोहि दीजिये|
वारी संगत दो  राम जी पलभर भूल  न होय ||
"हे प्रभु! सत्संगति दीजिये,जिससे आपको एक पल के लिए भी न भूलू |"
सत्संग से जो लाभ होता है वह लाभ साधन से नहि होता|साधन कर के जो परमात्म-तत्त्व को प्राप्त करना है,वह कमाकर धनि होने के सामान है|किन्तु सत्संग सुनना तो गोद में जाना है|गोद में जाने से धन स्वत: मिल जाता है | संतो ने कितने वर्ष लगाये होंगे  ? कितना साधन किया होगा?कितनो का संग किया होगा?उस सब का सर आपको एक घंटे के सत्संग में मिल   जाता है |इसलिए जब सत्संग मिले तो जरुर करना चाहिए|
संत समागम करिए भाई,लोह पलट कंचन हो जय|
नाना विधि बन राय कहिजे,भिन्न-भिन्न सब नाम धराई||




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