Sunday, September 18

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भारत स्वाभिमान – संक्षिप्त लक्ष्य, दर्शन एवं सिद्धान्त
 100% मतदान, 100% राष्ट्रवादी चिन्तन, 100% विदेशी कम्पनियों का बहिष्कार व स्वदेशी को आत्मसात करके, देशभक्त लोगों को 100% संगठित करना तथा 100% योगमय भारत का निर्माण कर स्वस्थ, समृद्ध , संस्कारवान भारत बनाना – यही है “भारत स्वाभिमान” का अभियान । इसी से आएगी देश में नई आजादी व नई व्यवस्था और भारत बनेगा महान् और राष्ट्र की सबसे बडी समस्या – भ्रष्टाचार का होगा पूर्ण समाधान । जगत की दौलत – पद, सत्ता, रूप एवं ऐश्वर्य के प्रलोभन से योगी ही बच सकता है । अत: राष्ट्र – जागरण के, भारत स्वाभिमान के अभियान में प्रत्येक योग – शिक्षक, कार्यकर्ता एवं सदस्य का योगी होना प्राथमिक एवं अनिवार्य शर्त है क्योंकि योग न करने के कारण अर्थात योगी न होने से आत्मविमुखता पैदा होती है । और आत्मविमुखता का ही परिणाम है – बेईमानी, भ्रष्टाचार, हिंसा, अपराध, असंवेदनशीलता, अकर्मण्यता, अविवेकशीलता, अजितेन्द्रियता, असंयम एवं अपवित्रता । हमने योग जागरण के साथ राष्ट्र – जागरण का कार्य आरंभ करके अथवा योग – धर्म को राष्ट्र – धर्म से जोड़ कर कोई विरोधाभासी कार्य नहीं किया है अपितु योग को विराट रूप में स्वीकार किया है । योग धर्म एवं राष्ट्र – धर्म को लेकर हमारे मन में कोई संशय, उलझन, भ्रम या असामन्जस्य नहीं है । हमारी नीयत एवं नीतियाँ एकदम साफ है और हमारा इरादा विभाजित भारत को एक एवं नेक करने का है । योग का अर्थ ही है – जोडना । योग का माध्यम बना, हम पूरे राष्ट्र को संगठित करना चाहते है । हम देश के प्रत्येक व्यक्ति को प्रथमत: योगी बनाना चाहते है । जब देश का प्रत्येक व्यक्ति योगी होगा, तो वह एक चरित्रवान युवा होगा, वह देशभक्त, शिक्षक व चिकित्सक होगा, वह विचारशील चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट होगा, वह संघर्षशील अधिवक्ता होगा, वह जागरूक किसान होगा, वह संस्कारित सैनिक, सुरक्षाकर्मी एवं पुलिसकर्मी होगा, वह कर्तव्य – परायण अधिकारी, कर्मचारी एवं श्रमिक होगा, वह ऊर्जावान व्यापारी होगा, वह देशप्रेमी कलाकार होगा, वह राष्ट्रहित को समर्पित वैज्ञानिक होगा, वह स्वस्थ, कर्मठ एवं अनुभवी वरिष्ठ नागरिक होगा एवं वह संवेदनशील न्यायाधीश अधिवक्ता होगा क्योंकि हमारी यह स्पष्ट मान्यता है कि आत्मोन्नति के बिना राष्ट्रोन्नति नहीं हों सकती । योग करके एवं करवाकर हम एक इंसान को एक नेक इंसान बनाएँगे । एक माँ को एक आदर्श माँ बनाएँगे । योग से आदर्श माँ व आदर्श पिता तैयार कर राम व कृष्ण जैसी संताने फिर से पैदा हों, ऐसी संस्कृति एवं संस्कारों की नींव डालेंगे। योग से आत्मोन्मुखी हुआ व्यक्ति जब स्वयं में समाज, राष्ट्र, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड व जीव मात्र को देखेगा तो वह किसी को धोखा नहीं देगा, वह किसी की निंदा नहीं करेगा क्योंकि वह अनुभव करेगा कि दूसरो से झूठ बोलना, बेइमानी करना व धोखा देना मानो स्वयं से ही विश्वासघात करना है, आत्म – विमुखता के कारण ही देश में भ्रष्टाचार, बेइमानी, अनैतिकता, अराजकता व असंवेदनशीलता है । हम इस सम्पूर्ण योग – आन्दोलन से इस धरती पर ॠषियों की संस्कृति को पुनः स्थापित कर सुख, समृद्धि, आनन्द एवं शांति का साम्राज्य लायेंगे । 
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